नवरात्रा में श्रद्धालु माँ दुर्गा की पूजा अलग अलग तरीके से कर रहे है। कोई मौन रहकर और और कोई बिना कुछ खाये और कोई सीने पर कलश रख कर माँ का व्रत कर रहे है। नवरात्रा के हर दिन माता के अलग अलग रूप की पूजा की जाती है।
नवरात्रा के दूसरे दिन श्रद्धालुओ ने माँ के ब्रह्मचारिणी रूप की पूजा की। मंदिरो में माता की आरती , मंत्र व श्लोक गूंजते रहे। भक्तो ने मंदिरो में जाकर व अपने पर पर पूजा की। चारो ओर भक्ति का सा वातावरण छा गया है।
ब्रह्मचारिणी का अर्थ तप की चारिणी अर्थात तप का आचरण करने वाली। मां के इस दिव्य स्वरूप का पूजन करने मात्र से ही भक्तों में आलस्य, अंहकार, लोभ, असत्य, स्वार्थपरता व ईष्र्या जैसी दुष्प्रवृत्तियां दूर होती हैं। मां के इस रूप की आराधना से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम जैसे गुणों वृद्धि होती है। माता ब्रह्मचारिणी हिमालय और मैना की पुत्री हैं. इन्होंने देवर्षि नारद जी के कहने पर भगवान शंकर की ऐसी कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने इन्हें मनोवांछित वरदान दिया. जिसके फलस्वरूप यह देवी भगवान भोले नाथ की वामिनी अर्थात पत्नी बनी. जो व्यक्ति अध्यात्म और आत्मिक आनंद की कामना रखते हैं उन्हें इस देवी की पूजा से सहज यह सब प्राप्त होता है. देवी का दूसरा स्वरूप योग साधक को साधना के केन्द्र के उस सूक्ष्मतम अंश से साक्षात्कार करा देता है जिसके पश्चात व्यक्ति की इन्द्रिया अपने नियंत्रण में रहती और साधक मोक्ष का भागी बनता है.
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना के लिए यह मंत्र है :
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥